जिंदगी।
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अय जिंदगी तू गर्व ना कर मैने तुझे नजदीक से देखा है।

बिछड़े हुवे अपनोको कहां मिलाती है तू ?
मिलानेके बाद और रुलाती भी तो है तू !
हरबार आस जगाती रहती हो तुम कुछ,
फिरभी हमे क्यों कभी हसाती भी हो तुम?

अय जिंदगी तू गर्व ना कर मैंने तुझे नजदीक से देखा है।

कभी तकदीर बनते ही बिगाड़ देती है तू।
ना जाने कितने ख्वाबो को मिटाती है तू ?
हरेभरे खेत डूबा देती है तू,और तो और,
जवान बेटेकी अर्थी को कंधा दिलवाती है तू

अय जिंदगी तू गर्व ना कर,मैंने तुझे नजदीक से देखा है।

जो सर नही ज़ुकते उनको ज़ुकाती है तू,
फिर जवानोको क्यों शहीद बनाती है तू ?
बाजारू औरतो में कमी आई है क्या ? जो
कई बेटी बहुओ को निराधार करती है तू।

अय जिंदगी तू गर्व ना कर,मैंने तुझे नजदीक से देखा है।

मौतके दरवाजेसे क्यों वापिस बुलाती है तू ?
नई आस जगाते क्यों फिर रुलाती हो तुम ?
इतने ना समझ तो हम भी नही है ,फिरभी
जाने क्यों नही जिंदगी को समझ पाए हम ?

अय जिंदगी तू गर्व ना कर,मैंने तुझे नजदीक से देखा है। बहोत नजदीक से देखा है।

Hindi Poem by Rajendra Solanki : 111514705

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