हवा के हाथों की मेहरबानी से डर गए हैं
यह फूल खुशबू की राईगानी से डर गए हैं
हमें भी रुखसत की रसम कुछ तो निभाना थी
तुम्हारी आंखों में आए पानी से डर गए हैं
यह तीर जितने फिजा में आकर ठहर गए हैं
किसी परिंदे की बे जबानी से डर गए हैं
अभी तो दिल को उदास करती नहीं है शामें
अभी से क्यों गम के हुक्मरानी से डर गए हैं
हमैं भी साहिल पे गीत लिखना था सीपीयों से
मगर हवाओं की मेहरबानी से डर गए हैं।।।