मानवजाति के विकास पथ पर, यह कैसा साया चा गया;
जितना अभिमान था हमें, हमारे इन आविष्कारों पर,
वह आज रह गए है सब धरे के धरे।

सोचने जैसी बात है दोस्तो, ना लेना इस शिख को तुम हल्के में,
मानवजाति का घमंड टूट गया है दोस्तो,
बस सोचना ऐसा क्यों हुआ।

-Dhruv Harish Rudani (DHR)

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Hindi Poem by DHR : 111512650

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