शब्दों की गहराईयो में ख़ुद को तराश क़र देखा हैँ, बेखालिया हीं थीं जिनको ख्यालो से निचोड़ कर फेंका हैं | ख़ुश हैं हम अपनी दुनिया में, बस कुछ उम्मीदेँ थी लोगो से उनको भी आज़मा कर देखा है | Zeba Praveen

Hindi Shayri by zeba Praveen : 111510722

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