मैं मरा था ...

चलते फिरते हुए
सांस लेते हुए भी
कितनी ही बार
मरा हूं मैं !

जब भी
किसी ने पुकारा
आस लिए
और
मैंने सुना अनसुना सा
कर दिया था
तब मैंने कहीं
अपने ही आप को
मार दिया था

जब भी
लोलुप लालसा लिए
मैंने अपनी
जेबों को भरा था
तब मेरा ही
कुछ हिस्सा खाली हुआ
और मरा था

जब भी
किसी के हक़ की
लड़ाई में
मैं दूर कहीं
पीछे चुपचाप
हाथ बांधे खड़ा था
तब मेरा मैं वहीं कहीं
मरा पड़ा था

जब भी
किसी ने विश्वास भरी
नज़रों से मुझे
अपने मन में भरा था
और मैंने पीठ में उसके
खंजर धरा था
तब वो नहीं
बल्कि मेरा ही कुछ हिस्सा
फ़िर से मरा था

जब भी मैं
मुश्किलों में घिरा था
और कुछ कदम चलकर ही
मैं हिम्मत हार
हताशा में
बीच राह खड़ा था
तब भी मैं मरा था

यूं ही
चलते फिरते हुए
सांस लेते हुए भी
कितनी ही बार
मैं मरा था ...

:- भुवन पांडे

#मृत

Hindi Poem by Bhuwan Pande : 111508674

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