बदले हुए से उनके, अंदाज़ देखते हैं ।
कब तक रहेंगे हम से, नाराज़ देखते हैं ।

इतनी सजा मिलेगी, सच बोलने की हमको ,
दुश्मन की तरह अब तो हमराज देखते हैं ।
अरमाँ मचल रहे हैं, फ़िर भी सँभल रहे हम ,
दीदार को तुम्हारे, मोहताज़ देखते हैं ।

छिटकी ये चाँदनी भी, लगती है धूप तीख़ी ,
सहमे से आज सारे, सुर साज देखते हैं ।
वो आसमाँ को छू लें, हम भी तो चाहते ये ,
बेशक़ हमें फ़क़त वो, मेराज देखते हैं।

सब कुछ करा रहा है,आता नहीं नजऱ वह,
देता कहाँ से हमको, आवाज़ देखते हैं ।

Hindi Shayri by Chirag Vora : 111500374

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