क्यूँ ज़माने ने इस कद्र हमसे किनारा कर लिया II
तेरे इश्क के सिवा क्या गुनाह खुदारा कर लिया II
तेरी शरमा के झुकी निगाहों की कसम साकिया I
शीशाए दिल टूटा तो मैकदे का सहारा कर लिया II
तेरे संग जीने की तलब में अज़ल तक आ गये I
तूने तो रकीब की बाहों का हार गवारा कर लिया II
अब कौन कहेगा कि तेरी मुहब्बत तो इबादत थी I
खुदा खुदा कर के तूने खुद को आवारा कर लिया II
एक तेरे सिवा तो कुछ और माँगा ना था हमने I
हमने तो इस शाह दिल को भी बंजारा कर लिया II
मेरी पाकीजा मुहब्बत को रुसवा ना कर ‘सरिता’ I
ये भी जानती हूँ मैं तूने तो इश्क दुबारा कर लिया II
आनंद सरिता