#सामान
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महज दो रोटी और एक छत का सफर,
निकले थे तय करने जिंदगी की डगर।
चंद पग में ही यह खबर आम हो गई-
पटरी पर बिखरी मेरे सपनों कि नगर।।
चाहा था क्या ज्यादा दो चार निवाला,
पानी से पेट की बुझती नहीं ज्वाला।
चाहत थी जन्मभूमि ही अंक भरेगी-
माटी में दब गई हर चाह की ज्वाला।।
मजदूर थे हम मालिक हममें प्राण था,
जीने के प्रति मेरा सुंदर रुझान था।
कुछ रोटियां रखी थी बच्चों के वास्ते-
क्षत-विक्षत पसरा वो मेरा #सामान था।। ✍