ग़ज़ल
बहर-122 122 122 122
सभी तीर उनके निशाने लगे हैं
निगाहों से* जादू चलाने लगे हैं
भरा चश्म में था ग़मों का समंदर
उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे हैं
सहारे वो* जिसके पहुंचें किनारे
वही नाव मांझी डुबाने लगे हैं
जिन्हें सौंप दी बेटियां वालिदों ने
वही डोलियों को लुटाने लगे है
कभी सर्द झोंकों से* जो डर रहे थे
दिए आंधियों में जलाने लगे हैं
चढ़ी सीढ़ियां जो सफलता की* मैनें
हमें गैर अपना बताने लगे हैं
जहां बेटियां हैं निगाहें झुकाए
वहां पे पिता सिर उठाने लगे हैं
कई पीढ़ियां साथ रहते भी* देखीं
यही कलयुगों के खजाने लगे हैं
जहां ले लिया है जनम बेटियों ने
सुमन खुशनुमा वो घराने लगे हैं
सभी कुछ लुटाकर जो* जीते दिलों को
सुमन वो सिकंदर कहाने लगे हैं
सीमा शिवहरे सुमन