#गुरु_पूर्णिमा_2020
भारतीय सभ्यता में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है, इसमें कोई दो राय नहीं है। यदि भारतीय सभ्यता के गौरवमयी इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो कमोबेश हर युग में अनिगिनित विद्वान हमारे समाज को दिशा दिखाते ही रहे हैं। लेकिन हिन्दू सभ्यता में जिस ऋषि को सर्वाधिक आदर दिया गया है, वह हैं चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता आदि गुरु ऋषि व्यास।

ऋषि व्यास की स्मृति में अपने गुरुजनों को उन्हीं का अंश मानकर उनकी पूजा-अर्चना करके गुरु पूर्णिमा का दिन भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी आज का दिन गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर धन्य होते थे।

समय के साथ शिक्षा के स्वरूप में बहुत बड़ा अंतर आ गया है, और इसके साथ ही गुरु के दायरे भी में असीमित वृद्धि हो गई है। वर्तमान के आधुनिक काल में यदि देखा जाए तो गुरु अर्थार्त शिक्षक का दायरा शिक्षा संस्थानों तक ही सीमित नहीं रह गया है। आधुनिक काल में विधा, धनुर्विद्या या शास्त्र-ज्ञान से कहीं आगे बढ़कर चिकित्सा,इंजीनियरिंग,विज्ञान,गीत-संगीत और साइबर,अंतरिक्ष विज्ञान या आध्यात्मिक ज्ञान तक पहुँच चुकी है।

. . . लेकिन क्या सिर्फ ये पेशेवर,वृत्तिक ज्ञान से ही जुड़ी है गुरू की महिमा।
नही. . . !
. . . अपने स्नेह और ज्ञान से हमें समृद्ध करने वाले मित्र,नाते-रिश्तेदार और शुभचिंतक भी कई मायनों में गुरु ही होते हैं।
. . . जन्म से व्यस्क अवस्था तक हमारी संभाल करने वाले और संसार की पहचान करने वाले माता-पिता हमारे प्रथम गुरु ही होते हैं।

. . . और वस्तुतः शास्त्रों में तो यह कहा गया है कि जो व्यक्ति आपको नींद से जगा दे, आपको सही मायनों में ज्ञान दे, वही सच्चा गुरु है।

वैसे सच्चे गुरु की खोज के संदर्भ में 'ओशो रजनीश' ने कहा था गुरु की खोज बहुत मुश्किल होती है। गुरु शिष्य को खोजता है और शिष्य गुरु को खोजता रहता हैं, लेकिन बहुत मौके ऐसे होते हैं जब गुरु हमारे आसपास होता है और हम उसे ढूंढ़ रहे होते है किसी मठ में, आश्रम में, जंगल में या किसी दुनियां के किसी चकचौंध मेलें में !
दरअसल बहुत से साधारण लोग हमें गुरु लगते ही नहीं हैं क्योंकि वे तामझाम के साथ हमारे सामने नहीं आते। वे न तो ग्लैमर की दुनिया से आते है और न ही वे हमारे जैसे तर्कशील होते हैं। हमारे जीवन में ऐसे बहुत से मौके आते हैं जब गुरु हमारे सामने होते हैं और हम किसी अन्य तथाकथित के चक्कर में लगे रहते हैं।. . .

ऐसे ही सच्चे और पूजनीय गुरुओं को गुरु पूर्णिमा पर शत: शत: नमन...।

जीवन में उन सभी आदरणीय शुभचिंतको को समर्पित जिन्होंने हर कदम पर मुझे सही मार्ग दिखाया.......
सादर! __/\__

/वीर/

Hindi Thought by VIRENDER  VEER  MEHTA : 111497085

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now