आज फिर बारिश हुई।
और में भीगा नहीं।
तुमने भीगते हुए एकबार हाथ पकड़ा था।
वो मंजर आज भी आंखो में कैद है।
में अब गीली खिड़खियों से झांकता नहीं।
ना बूंदों से खुशबू आती है।
घर भी वीराना है।
मेरी बारिशे सुख गई है।
तुम लौट आओना ।
हम फिर भीगेंगे साथ में ।
फिर बिजली कड़केगी और
तुम मुझसे लिपट जाना।
हुकमसिंह जडेजा