हाँ शायद मुझे तुमसे मोहब्बत है।
कब हुई, क्यों हुई.. मैं नहीं जानती।
मगर हो गई।
शायद तुमसे मोहब्बत होने का एक कारण यह भी है कि तुमने मेरे डर को पहचान लिया था। मेरी कमजोरियों को भांप लिया था।
जैसे तुमने मुझे इतने गौर से देखा कि चेहरा ही पढ़ लिया।
इतने करीब से जाना कि खामोशी का मतलब समझ लिया।
तुमने वो पढा था, जो मैंने कभी लिखा ही नहीं।
तुमने वो सुना, जो मैंने कभी कहा ही नहीं।
तुम मुझे बहुत कम समय में बहुत ज़्यादा जान चुके थे।
मैंने कभी तुमसे उतना नहीं कहा, जितना कहना चाहती थी।
मैंने कभी तुमको उतना नहीं सुना, जितना सुनना चाहती थी।
तुम यकीन नहीं करोगे,
मगर मैं.. तुम्हें खामोशी से सारी जिंदगी सुन सकती हूँ।
सुन सकती हूँ.. इसलिए कह रही हूँ,
क्योंकि तुम्हारी ओर देखना मेरे लिए किसी चलती हुई ट्रेन में चढ़ने जैसा है। कितना सम्भव है और कितना असम्भव है.. ये बस असमंजस भरा हुआ है।
हाँ, जब तुम दूर कहीं होते हो तो तुम्हें देखना आसान है, बस तुम मेरी ओर ना देखो।
और करीब होने पर तुम मुझे कितना देखते हो, तुम ही जानते होगे, क्योंकि मेरी नज़र तुम पर कुछ क्षण से ज़्यादा नहीं ठहर पाती।
तुम्हें देख मुस्कुराना भी मेरे लिए उतना ही मुश्किल है जितना किसी नन्हे शिशु के लिए पहला कदम बढ़ाना।
तुम्हारी मौजूदगी से ही मैं सब भूल जाती हूँ।
कुछ याद नहीं रहता, ये भी याद नहीं रहता कि बोलना क्या है.. मेरे शब्द जैसे गूंगे हो जाते हैं और ज़ुबान अनपढ़।
तुम्हें देख के मेरे दिल में कोई गाना नहीं आता,
या कोई संगीत नहीं बजता, क्योंकि धड़कनों का इज़ाफ़ा सब कुछ रोक देता है।
जैसे, उस पल सारी दुनिया ठहर सी गई हो।
जैसे, तुम्हारे होने से मेरा होना ही मुझे महसूस नहीं होता।
ऐसा लगता है मेरा वजूद तुम में घुलता ही जा रहा है।
सुनो, पता नहीं मैं जीवन में किसी पल तुमसे यह कह भी सकूं या नहीं, कि मैं तुमसे मोहब्बत करती हूँ,
कभी अपने दिल की ऐसी अनगिनत बातों को तुमसे साझा कर भी सकूं या नहीं।
वो चाँद की रोशनी में बैठ के बातें करना, तुम्हें जी भर देखते हुए सुनना.. कभी सच होगा भी या नहीं।
और, यह भी नहीं पता मुझे की तुम्हें मुझसे मोहब्बत भी है या नहीं।
जानती हूँ प्रतियोगिता नहीं है.. मगर,
इस बात को पूरे ईमान से कह सकती हूँ..
कि मुझसे ज़्यादा मोहब्बत तुम्हें कोई नहीं कर सकता।
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