कुछ इस क़दर मशरूफ़ हुए
ज़िन्दगी की दौड़ में
रिश्ते उतने बर्बाद हुए
जितने हम आबाद हो गए
बहुत कुछ पाने निकले थे हम
एक बड़ा ईरादा लेकर
कामयाब ऐसे हुए कि
सबके लिये माह़ताब हो गए
जिन्हें छोड़ आए थे हम
वो कहीं दूर निकल गए
उनके संग गुज़ारे हंसीन पल
आज देखो ख़्वाब हो गए
- अनिता पाठक