एक कोरे कागज पर रखा एक बिन्दू ,
आसीमित शब्दो को समेटे ,

बड़े चतुराई से खामोश बैठा है|
लिए असीमित पीड़ा, मौन रहने की विवसता मे |

असीमित अानन्द की अभिव्यक्ति है ,
जो हृदय को चीरकर निकला है ,

न जाने किसको खोजने | हजारो आँसुओ की बूंद को सुखाकर बना है मानो यह |

या मानो आशाओ के दीपक पर,
अश्रु की एक बूंद पड़ने से प्रकाश के ,
कण का छिटकना हो |

या फिर विवशता के कमरे की,
एक झिरी से झाँकती एक आँख हो |

अथवा संकेत दे रही हो अपने जीवित होने का,
प्रतीक्षा की औषधि से पोषित होते हुए |

ऐसा लगता है कि किसी को मिटाने का संदेश है यह ,
या फिर खुद की समाप्ति का आगज़|

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111493843

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