सीधे रास्तो पर टेढी-मेढ़ी चलती जिंदगी ,
वक्त के पीछे चलती असहाय, बराबरी की शिकायत करते|

उदासीन , प्रभावहीन कभी रूक कर सुसताती , तो
कभी टाल मटोल करती , जिन्दगी जाने कितना पछताती,

कभी जोश मे भर खुद को ऊर्जावान बताती ,तो कभी हताश , निरास असफलता के किसी कोने मे बैठ खुद का ही मातम मनाती जाती |

कभी आसमान की ऊँचाईयो तक कल्पना की उड़ान भरती ,तो कभी बीज बन आशाओं के बगीचे मे विकास के सुगन्धित पुष्प चुनती |
#टेढ़ा -मेढ़ा

Hindi Poem by Ruchi Dixit : 111493491
Ruchi Dixit 4 years ago

धन्यवाद🙏

shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अत्यंत सुंदर सृजन

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