उत्साही मन तू कहां जा रहा है
नीली सी स्याही में डूबा जा रहा है

उत्साही तन तू कहां जा रहा है
शब्दों के जाल में फंसा जा रहा है

उत्साही मन जग की ना सुनता
उत्साही तन खुद की ना सुनता
तभी तो कभी यहां तो कभी वहां जा रहा है

Hindi Poem by vikas kushwah : 111492309

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