पापा जी (भाग-2)
पापा जी जैसा बनने के लिए कष्टों को उठाना होगा, हर हाल में मुस्कुराते रहना होगा।
मगर, हम तो परिस्थिति के आगे हार मान लेने वालों में से हैं, छोटी बातों में परेशान होने वालों में से हैं..
हम ज़्यादा ही भावुक हैं इसलिए वो अकसर हमसे कहते भी हैं, कि हमारे आँसू आँखों में ही रखे रहते हैं।
सच तो यह भी है कि उनके रहते कष्ट क्या होता है हमने कभी जाना ही नहीं, तो भला उनके जैसे बनते कैसे?
पापा जी तो दूसरों के बड़े-बड़े काम चुटकियों में ही कर देते हैं, हमसे तो हमारे ही काम नहीं होते। वो ठहरे आत्मनिर्भर और हम ठहरे उन्हीं पर निर्भर।
सबसे खास बात यह है कि उनके जैसा बनने के लिए समझदार बनना होगा, और हम तो बिल्कुल भी समझदार नहीं है। शायद इसलिए भी क्योंकि उन्होंने कभी हमारे बचपने को हमारी ज़िद को मरने नहीं दिया।
ये उन्हें भी पता है, कि हम उन जैसे नहीं बन सकते।
क्योंकि उनसे बहुत बार कह चुके हैं.. कि हम आप जैसे कभी नहीं बन पाएंगे।
और हम तो हमेशा ही उनसे यह भी कहते हैं, कि आप हमारे बुढ़ापे का सहारा हैं। इस बात पर वो बहुत हँसते हैं.. और सहमत होकर कहते हैं.. ये तो बिल्कुल सही कह रहे हो।
मज़ाक छोड़कर सच भी कहें तो.. उनका सहारा बनें इतनी क्षमता नहीं है हम में,
और सच तो यह है कि उनके जैसे इंसान को सहारा बनना आता है.. लेना नहीं।
उनकी बेटी होना हमारे लिए, गर्व से ज़्यादा हमारा घमंड हैं।
हमारी इतनी कमियों के बाद, हम में उनका कोई गुण है या नहीं, हमें नहीं पता।
मगर हाँ यह गुण ज़रूर है, की हम उनकी तरह भावनाओं को महत्व देते हैं, और सच बोलने से नहीं डरते।
और सच यही है कि हम बहुत मजबूत पिता की कमजोर बेटी हैं। ( और हाँ, यह भी वो जानते हैं)
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