मति भ्रष्ट है
जीवन त्रस्त है
हौसले पस्त हैं
तो फिर क्यों जी रहा है
मुर्दा है तू.....
फिर क्यों धिक्कार सांसें पी रहा है।।
#भ्रष्ट

Hindi Poem by मिन्नी शर्मा : 111483873

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