क्यों एसा हुआ तेरी तो मंगनी हुइ पर मे खुश नही तेरी खुशी से खुश ओर गम मे दुखी, .
आज तेरी इतनी बडि खुशीयो मे मैं क्यो शामिल नही क्यु घिन आ रहि है तेरे मंगेतर से तु तो सिर्फ़ दोस्त है फ़िर भी आख मे आसु क्यो है , दोस्त से ज़ादा तो हम थे नही फ़िर भि मन क्यो तुम्हे सबसे कहि दूर भगा के ले जाने को कर रहा है एक नइ दुनिया बसाने को कर रहा है.. .
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पता नहि कब मुहे तुजसे प्यार हो गया पर तेरी तो मंगनी हो गइ... सहि मे कइ एसे किससे देखे है लोग धर्म, जाती, उच -निच ओर उम्र कि फ़ासले कि वजह से दोस्त हि बने रेहते है कभी प्यार का ज़िक्र भी नही करते लेकिन जब दोनो मे से कोइ एक अपने जिवन मे आगे बढता है तो एक कि कहानी वहो ठेहेर जाती है , अपनी तुलना उसके दोस्त के पार्ट्नर से करता है ओर अपनी दोस्ती भी दाव पे लगा देता है एक अजब कश्म कश होती है... पर अब क्या फ़ायदा. .
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