टूटे अहम का भाव जन से, संकल्प सिंचित ज्ञान हो। होवे सफल जीवन
सभी का,
अनहद सरस संगीत हो ।
हे करुणानिधे !अंतः करण से गहन तम
हर लीजिए।
ऋण उतारू इस धरा का, आत्म दोषों को निहांरु।
मनु धीर हो, गंभीर हो, विचलित न हो संसार में। विवेक दीपक जल उठे, प्रभु! ज्ञान प्रज्ञा दीजिए।

Hindi Poem by Tara Gupta : 111475902

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