विधुर पुरुष 2

अक्सर विधुर पुरुष
बहुत ही झुंझलाता है
माँ का प्यार बच्चों पर
जब नहीं लुटा पाता है
माँ सा आंचल देना चाहता
मगर नहीं दे पाता है
फटेहाल ठिठुरती रातों में
माँ नहीं बन पाता है
अक्सर विधुर पुरुष
बहुत ही झुंझलाता है
बच्चों को बाहों में लेता
धूप ताप से बचाता है
माँ पिता दोनों बनकर
दोहरी भूमिका निभाता है
अपने कुर्ते का आंचल बना
खुद सर्दी सह जाता है
अक्सर विधुर पुरुष
बहुत ही झुंझलाता है
बाहर मजदूरी करता
घर में खाना ना पकता है
खुद के आंसू रोक कर
बच्चों को हंसना सिखाता है
खुद बारिश को सहनकर
बच्चों का छाता बन जाता है
अक्सर विधुर पुरुष
बहुत ही झुंझलाता है

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा
मौलिक रचना

Hindi Poem by एमके कागदाना : 111473716
Pawan Singh 4 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद

एमके कागदाना 4 years ago

जी हार्दिक आभार

एमके कागदाना 4 years ago

जी मेरे गांव का नाम है जिला सिरसा हरियाणा में

Pawan Singh 4 years ago

मुझको "कागदाना"का अर्थ समझना है?।

Priyan Sri 4 years ago

क्योंकि तब वो वास्तव में पिता के साथ - साथ माँ भी बन जाता है.. 👌👌

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