विधुर पुरुष

अक्सर विधुर पुरुषों के
अधिकारों की गुर्राहट
बेटियों के आगे
बौनी हो जाती हैं
वे समझते हैं
औरतों की वल्यू
कभी खीजते हैं
झुंझलाते हैं
किंतु बेटी के
उलझे केश देखकर
झटक देते हैं झुंझलाहट
ऐसे पुरुष अंदर से
कठोर होने का
दिखावा करते हैं
मगर रो पड़ते हैं
बेटी की विदाई पर

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा

Hindi Poem by एमके कागदाना : 111471363
shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति...

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now