एक थी कोमल कली जोअचानक,
निर्दयी के हाथ मे थी आ फँसी
मन मे सहमी और डरी फिर,
भाग्य से कुछ प्रश्न भी करती रही।
क्यो न मुझको राजपथ पर था लगाया?
या शहीदो के शवो पर ही सजाया!

निर्दयी के हाथ मे ही क्यो थमाया?
उसने मसला हाथ से आनन्द पाया।-----------

#निर्दयी

Hindi Poem by Suman Lata Singh : 111470919
Rajneesh Kumar Singh 4 years ago

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति...

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