#निर्दयी
ना समझ सके वह ना समझ सके हम पर बहुत कुछ कह दिया आखिर बेजुबा कीभी एक भाषा होती है..आंखों की तभी अहमियत होती है..
बाते लबजो सेनहीं केवल जज़्बात से होती हैं
..निर्भया कांड..
आखिर इंसान इतना # निर्दयी कैसे हो
सकता है ?
चिक रहे थे हम कुछ अपनी इज्जत बचाने के लिए आखिर तो किसी को भी हमारी गूंज सुनाई दी गई होगी..
इंसान की दरिंदगी की आत्मा ने हवस की लालच में हमें कुछ इस तरह गेरा था हमारी सांसे अपनी होकर भी आज पराई लगती थी.. आंखों में आंसू निकलते थे फुट-फुट के फिर भी हिम्मत कम नहीं थी ..आखरी सांस तक दरिंदों से लड़ना हमने यह थाना था।
किसी की बेबसी का इतना लाभ कैसे यह उठाते हैं उनको यह पता नहीं शायद यही कोख से वह आए हैं ?
हमने भी मरते दम तक हमारे जिस्म को नहीं छोड़ा था खून से लथपथ हो गए थे हम पर हमारी इज्जत को नहीं दाग लगने दिया था..
काफी देर तक हम लड़ते रहे हम एक थे वह अनेक थे फिर.. कभी पाइप से कभी हाथो से हमें बहुत सी चोट जिस्म पर पहुंचाई थी..
हमारी आंखें शरीर अब साथ नहीं दे रही थी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था हमें अंधेरों ने गेरा था और अब हम बेहोश हो चुके थे ।
उनकी की ये हैवानियत की यह आखरी सीमा
थी.. हमारा खून से लथपथ पूरा शरीर नोंच डाला
खून और कुछ आंसू हमारी बस इतनी ही कहानी होगी..
जिंदगी और मौत की जंग में आखरी सांस तक हम लड़ते रहे..हमें जीना था,हमें बहुत कुछ करना था पर आज हम जंग हार चुके थे थोड़े दिन के बाद दर्द सहते सहते हमारी सांसे भी कुछ शांत हो गई..
एक स्त्री पहले भी बेबस थी सायद आजभी
बेबस ही हैं ?
Sunil Kumar Shah