_शीर्षक_ : *आशा की किरण*
_थक गया हूँ अब मैं, भार यह उठाते उठाते।_ (1)
_फिर भी बढ़ रहा, मैं मार्ग में आगे निरंतर॥_ (2)
_इन सभी बोझ तले दब कर मैं, टूट सा गया हूँ।_ (3)
_लगता हैं अपने आप ही, पिछे कही छुट सा गया हूँ॥_ (4)
_दिखती नही उम्मीद कही, हर क्षण यहाँ निराश हूँ मैं।_ (5)
_हुआँ अस्त जो सूर्य अभी, उसी के भीतर का प्रकाश हूँ मैं॥_ (6)
_संकट से घिर कर मैं, अपने ही व्यक्तित्व को भूल गया।_ (7)
_पता नही कैसे, यह सर इस तरह से झुक गया॥_ (8)
_नही, नही रुक सकता मैं, अभी पथ तो आगे बाकी है।_ (9)
_क्यों छोडू मैं आशा को, मेरा साहस ही तो एक साथी है॥_ (10)
_जो अस्त हुआ है सूर्य वह, पुनः उदय हो जायेगा।_ (11)
_मेरे एक आशा के प्रकाश से,_ _सारा विश्व_
_आच्छादित हो जायेगा॥_ (12)
- *PRATHAM SHAH*