बस....तुम नहीं हो

कुछ भी तो बिखरा हुआ नहीं है
बहुत करीने से सजी है ज़िन्दगी मेरी
एक कोना खाली है और
बस....तुम नहीं हो।

मुस्कुराती हैं सुबहें, गुनगुनाती है रातें
गुमसुम सी हैं शामें और,
बस....तुम नहीं हो।

मचला है मन, महकी हैं सांसें
गुमसुम सी है धड़कनें और
बस....तुम नहीं हो।

बिखरे हैं रंग, फैली है खुशी
गुमसुम सी है हँसी और
बस....तुम नहीं हो।

बरसी है बारिश, भीगा है मन
गुमसुम से हैं हम....
बस....तुम नहीं हो।

©️®️
✍🏻शिल्पी सक्सेना

Hindi Poem by Shilpi Saxena_Barkha_ : 111466373

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