#Kavyotsav2
घाव फिर इक नया सा लगता है

जब भी चेहरा कोई मुझे तुझसा लगता है,
घाव फिर दिल पे कोई इक नया सा लगता है!

साँसे घुटती है मेरे सीने में बारहा फिर कहीं,
सामने फिर कोई सितमगर खड़ा सा लगता है!

सौगातें मिली है ख़लिश की मुझको इतनी,
साथ अब कितना भी मिले ज़रा सा लगता है!

बे-ख़याली में हो जाती है यूंही सहर अक्सर,
रात फिर भी जाने क्यूँ मुझे ठहरा सा लगता है!

तुझसे मिलने की अब कोई चाहत ना रही मुझको,
जीना मगर बिन तेरे क्या जीना सा लगता है!

जब भी चेहरा कोई मुझे तुझसा लगता है,
घाव फिर दिल पे कोई इक नया सा लगता है!!

कीर्ति प्रकाश

Hindi Poem by RJ Kirti Prakash  All India Radio Mumbai : 111460218

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