#शुरुआत
हटा ये निराशा की चादर,
नया सवेरा लाया नयी शुरुआत ।

फिर क्यों लेटा गमों के बिस्तर पे,
अंधेरा घन्ना हुआ तो क्या?

सूरज का तेज पुकारे तुजको,
आसमान का सितारा बन जाने को ।

सुवर्ण,पीतल सम रंग होय रे,
जो अग्निपंथ से गुज़र के कंचन होय रे ,
Mahek parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111457082

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