हरि नाम से प्रीत
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प्रेम - प्रीत का पीकर प्याला,
विष को भी अमृत कर डाला
चंचल चितवन में चाहत से ,
हरि को वश में कर डाला।
इश्क़ हरि नाम से कर के,
जप ली हरि नाम की माला।
हरि नाम से करी आशिकी,
स्नेह मिला हरि का निराला।
अब कोई ख्वाहिश नहीं बाकी,
हरि चरणों में मन जो लगा।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित