माँ जब आँगन में तुलसी की पूजा करती है..
तो मैं उसे देखा करती हूँ.. और सोचती हूँ ये घण्टों आँखें मूंदे आखिर ईश्वर से क्या माँगती है..
रसोई में घण्टों खाना पकाने के बाद माँ ने कभी नहीं कहा की वो थक गई है। शायद माँ थकान शब्द से परिचित ही नहीं है। मैंने उसे हमेशा ही मेरी रोटियों की गिनती ग़लत करते देखा है। ठीक वैसे ही जैसे वो अपनी आवश्यकताओं की गिनती नहीं रख पाती है। और फिर उलझन भरे भाव से कहती है.. "नहीं, मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है"।
ये माँ कितना भी पढ़ी लिखी क्यों ना हो, हिसाब के मामले में बहुत कच्ची होती है।
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