कल रात की तन्हाई में
खुद से मैं मिली
जैसे बरसो बाद मिली
भीड़ में कही गुम
खुद से मिली
दिल टूट के जर्जर था
पर भी बाकी थी धड़क
अश्को के कई मोती
गिर चुके थे
फिर भी आंखों में
बाकी थी चमक
सबके लिए जीते जीते
खुद को भूल दिया था
कल रात मिली तो लगा
उसे भी तो मेरा
साथ चाहिए था
सब कुछ लुटा कर भी
क्या मिला
ख्वाबो के चंद टुकड़े
और जलता लहू मिला
आज फिर से थामा
हाथ खुद का
चल पड़ी हूँ
नई राह पे
अब आत्म सम्मान से
समझौता नही
अब साथ हूँ खुद के
हर मोड़ पे
अब अपनी खुशी
के लिए
किसी और कि
मोहताज नही
खुदा ने दिया है
एक लिबाज़
मुझे खुद के भी
नाम का
अब तेरे मुताबिक
रहना मेरे बस का
काम नही

Hindi Poem by Shree : 111450560

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