चलो, सुबह हो गई, खिड़की से कितनी अच्छी धूप आ रही है,कम से कम दिनभर के लिए कमरे में उजाला तो हो जाएगा, नहीं तो शाम होते ही हर जगह अंधेरा ही अंधेरा हो जाता है____
मैं तो थक गई हूं, इस कमरे में रहते-रहते, वहीं कमरा, वहीं परदे, वहीं पलंग, वहीं पंखा,पांच सालों से रंग-रोगन भी तो नहीं हुआ कमरे में, दीवारें कैसी फीकी-फीकी हो गई है, कोई रौनक नहीं है, लेकिन इस कमरे के सिवा मेरा कोई ठिकाना भी तो नहीं है, आखिर कहां जाऊं?
पांच सालों से इस कमरे में रहते-रहते परेशान हो गई हूं, कोई आता भी तो नहीं है,इस कमरे में, और मैं भी नहीं जा सकती,इस कमरे को छोड़कर, मेंरी भी तो मजबूरी है....
हाय, मेंरा जीवन कितना उदास और वीरान है, कोई उमंग नहीं, कोई खुशी नहीं_____
तभी अचानक कमरे का दरवाजा खुला और तीन साल का प्यारा सा बच्चा अंदर आया और कमरे का मुआयना करने लगा, चीजों से छेड़छाड़ करने लगा, उसे ऐसा करते हुए देखकर मुझे कितना अच्छा लग रहा है, बहुत खुशी हो रही है,मन कर रहा है उसे गोद में उठा कर ढेर सारा प्यार करूं,पर क्या करूं, बहुत मजबूर हूं।
तभी बाहर से सासू मां के चिल्लाने की आवाज आई_____
"अभय"कहां हो बेटा?
यहां हूं नानी इस कमरे में...
उस कमरे में,क्यो गया? मना किया था,चल बाहर आ।
जा मामू के साथ बाजार जा, मामू बुला रहे हैं.....
और बच्चा बाहर चला जाता है।
तभी बच्चें की मां और मेरी सासू मां की बीच हो रही बातों की आवाज मुझे मेरे कमरे तक सुनाई दे रही हैं_____
मां,अब तुम अभय को उस कमरे में जाने से क्यो रोक रही हो,तब नहीं सोचा,जब भाभी पांच सालों तक मां नहीं बन सकी तो तुमने कितना कोसा, उसमें भाभी का दोष नहीं था,कमी तुम्हारे बेटे में थी,ले तो आई तुम पांच साल पहले नई बहू,वो भी तो मां नहीं बन सकी____
भाभी की गलती क्या थी? उसके हाथ से तुम्हारी मंहगी केतली टूट गई तो तुमने उसके सर पे सिलबट्टे का बट्टा दे मारा और अपने इन्स्पेक्टर भाई को बुला कर केस को रफा-दफा करवा दिया ,खून को पोंछ कर, और लाश को फांसी पर लटका दिया और सबसे कह
दिया कि बहु ने बच्चे ना होने के दु:ख में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, तभी से भाभी की आत्मा उस कमरे में रहती है, उन्हें मुक्ति नहीं मिली अभी तक।
सरोज वर्मा____