रातभर जलती है शमा
सुबह तक राख होने के लिए

जैसे उसने मोहब्बत की थी
रात के बिछौने के लिए।

जलना भी, खुद को था
जलाना भी, खुद को था

जागती रही वो शमा
सुबह तक खाख होने के लिए।।

Hindi Shayri by Abhishek Sharma - Instant ABS : 111448835

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