मैं शाहजहां बोल रहा हूँ ।
हाँ वही जिसने ताजमहल तामीर कराया था ।
अपने प्यार की खातिर ।
तुम लोग जिसे देखकर आहें भरते हो ।
अजूबा कहते हो जिसे ।
मैंने मजदूरों के हाथ क्या काटे ।
जी भर गालियाँ सुनाई तुम लोगों ने ।
लेकिन ध्यान रखो ।
मैं मरा नहीं था कभी और मरूँगा भी नहीं ।
जबतक मजदूर इस धरती पर हैं ।
देखो आज मैं अपने हजार रूपों के साथ ,
खड़ा हूँ तुम्हारे पास पहचान सकते हो तो ।
पहचानों मुझे ।
और दो गालियाँ ।
नहीं दे सकते क्योंकि तुम मुझे जिस कपड़े से पहचानते थे
मैने उतार दिया है ।
और अब मैने हाथ काटना भी छोड़ दिया है ।
अब तो मैं सीधा सिर काटता हूँ सिर ।
भूख बनकर मार देता हूँ ।
मैं इन सब भागने वालों को रोक सकता था ।
क्योंकि इनके चेहरे आज भी मुझे मेरे बेडरूम में दिखते हैं
इनके होने का अहसास मैं अपने गार्डन में भी पाता हूँ ।
इनका अस्तित्व मैं घर के हर कोने में पाता हूँ ।
इनके दुधमुंहे बच्चों की किलकारियां जैसे कल की बात हो ।
लेकिन मैं इन्हें नहीं रोक रहा ।
क्योंकि इनकी नियति में दखल देने वाला कौन हूँ मैं ।
भागने दो ,थक कर गिरने दो ,मरने दो ।
इनको इनके किए की सजा मिलने दो ।
मैं वातानुकूलित कक्ष में अपने बच्चे संग खेल रहा हूँ ।
हाँ मैं शाहजहां बोल रहा हूँ ।
हाँ मैं शाहजहां बोल रहा हूँ ।

Hindi Blog by Arun Kumar Dwivedi : 111448700

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