तुम्हारे अनुराग की तरह,
तुम्हारे स्वर का सम्मोहन भी अद्भुत है,
अपनत्व की सघनतम कोमलता,
और सत्य की अकम्पित दृढ़ता का
ये संयोग तुम्हारे पास ही हो सकता है.
और स्वरों के इसी अपरिमेय सम्मोहन ने
मुझे उस एक क्षण में स्तंभित कर दिया I
उस दिन सब उदास थे,
सबको लगता था तुम चले जाओगे.
मुझे राग, अनुराग और विराग रहित,
नेत्रों से,अपलक अपनी ओर देखते हुए,
तुमने अपनी स्नेहमयी सम्मोहिनी वाणी में
सदा की तरह, भुवनमोहिनी मुस्कान के साथ
मेरे निकट आकर कहा था,
मैं जहाँ आ गया वहाँ से कभी जाता नहीं,
वृन्दावन से भी नहीं जाऊंगा, क्योंकि
मैं तो इसके कण कण में बस गया हूँ.
ऐसे चित्रलिखित सी क्या देख रही हो,
ये जमुना जल मैं ही तो हूँ, संदेह हो
तो देखो, हमारे वर्ण भी एक जैसे हैं – श्यामल
वो कदम्ब भी मैं ही हूँ, और उसकी छाया भी.
यदि मैं ना होता तो क्या वृंदा होती यहाँ,
और क्या ये वृन्दावन कहलाता ?
अब तो मानती हो कि मैं आकर कभी जाता नहीं I
युग बीत गए #कृष्ण मैं आज भी उसी सम्मोहन में जी रही हूँ.
वैसे ही तुम्हारे साथ, जमुना तट पर, कदम्ब की छाया में.
#कृष्ण #प्रेम #स्वर

Hindi Poem by Meenakshi Dikshit : 111446047

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