प्रश्न:- क्या आपकी दृष्टि में स्थान का कोई भी महत्व नहीं है?
ओशो:- है भाई स्थान का महत्व क्यों नहीं है सुनो।
एकबार चंदूलाल मुझसे कह रहे थे कि चौपट हो गया जब से विवाह किया तब से चौपट हो गया।
मैंने उनसे पूछा कि पत्नी से मिले कहां थे? उन्होंने कहा चौपाटी पर
मैंने कहा होगा ही चौपट। स्थान तो सोच-समझ चुना करें। पत्नी से पहली दफे मिले एक तो वैसे ही खतरा और वह भी मिले चौपाटी पर।
मगर मैंने उनसे कहा कि तुम्हारी पत्नी कुछ और ही कहती है। वह तो कहती फिरती है कि जब से मेरा विवाह हुआ तो चंदूलाल लखपति हो गए। और तुम कहते हो चौपट हो गया।
चंदूलाल ने सिर से हाथ मार लिया। कहा वह भी ठीक कहती है।
मैंने कहा कि यह तो बड़ी पहेली हो गई तुम कहते हो चौपट हो गए और पत्नी कहती है कि लखपति हो गए।
वह कहने लगे हां ठीक कहती है। पहले मैं करोड़पति था।
अब तुम पूछते हो कि स्थान का कोई मूल्य होता है कि नहीं?
कहां की पागलपन की बातें पूछते हो सारी पृथ्वी एक है। इसमें क्या काबा और क्या काशी? जहां झुके परमात्मा के प्रेम में वहां काबा।वहां काशी। और ऐसे तुम काबा में ही बैठे रहो और न झुको तो क्या खाक काबा कर लेगा और क्या खाक काशी कर लेगी। काशी में कितने तो बैठे हैं मुर्दे तुम सोचते हो कुछ लाभ हो जाता है?
कबीर भी मरते वक्त बोले कि मैं काशी में नहीं मरूंगा मुझे काशी से ले चलो।
लोगों ने कहा पागल हो गए आप। लोग मरने के लिए काशी आते हैं आखिरी करवट लेने काशी आते हैं। क्योंकि सदा से समझा जाता है कि काशी में जिसने आखिरी करवट ली वह स्वर्ग गया। और तुम्हारा दिमाग फिर गया जिंदगी भर काशी रहे अब मरते वक्त कहते हो काशी नहीं रहेंगे।
कबीर ने कहा काशी में मरे और स्वर्ग गए तो वह काशी का अहसान होगा। अपना क्या गुण? नहीं हम काशी में न मरेंगे। स्वर्ग जाएंगे तो अपने बल से जाएंगे काशी के बल से न जाएंगे।
हट गए काशी से नहीं मरे काशी में। इसको कहते हैं हिम्मत के लोग।
कबीर सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि स्थानों का कोई मूल्य होता है कोई काशी में मरने का सवाल है सारी पृथ्वी उसकी है। सारा आकाश उसका है। मरते किस ढंग से हो इस पर निर्भर करता है। कहां मरते हो इससे क्या होने वाला है? किस आनंद से मृत्यु को अंगीकार करते हो नाचते, गाते तो मृत्यु भी फिर परमात्मा का द्वार बन जाती है।
तुम्हें फिक्र पड़ी है स्थान की अजीब-अजीब बातें हमारे दिमाग में भरी हुई हैं। किसी को स्थान की फिक्र है किसी को समय की फिक्र है किसी को दिन की फिक्र है कि कोई दिन शुभ होता है कोई अशुभ होता है कोई स्थान शुभ, कोई स्थान अशुभ। अपने पर न फिक्र करना और सब चीजों पर टालना स्थान, तिथि, दिन। एक बात भर छोड़ रखना खुद के भीतर मत खोजना कभी