#पतंग
मन पतंग सम उड़ता
कल्पना के आकाश में
इठलाता, कलाबाजियां खाता
गोते लगता रोज, उतर आता
यथार्थ की जमीन पर
मन बड़ा चंचल रोके ना रुके
बुद्धि की लगाम लगता
तब कहीं काबू में आता
फिर वही पतंग-सम उड़ान भरता
कल्पना के अनन्त आकाश में।

Hindi Poem by Gyan Prakash Peeyush : 111441504

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