लगता है कि
मैं बेवजह ही
अपने को
शूरवीर समझ बैठा हूं -
यूं लड़ते, अड़ते हुए
दुनिया भर से
अन्याय के खिलाफ़

जबकि -
रोज़ ही ज़रा ज़रा
टूटता हूं भीतर से
कमज़ोर पड़ जाता हूं मैं
खुद से ही
अड़ते, लड़ते हुए

कितने ही दोराहे
आते हैं जीवन में
और
मन द्वंद्व में घिरा
लड़ता रहता है
अड़ता रहता है
अपने आप से ही
खोजते हुए
सही रास्ता अपने लिए

:- भुवन पांडे

#शूरवीर

Hindi Poem by Bhuwan Pande : 111440840

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