वह जो गली-गली थी भटकती
देखती दिन रात सपने तुम्हारे आने के
करती प्रतीक्षा... मंद-मंद सांसो से
धौकती आग दिल की
सफेदी सी छाई रहती थी
हरदम उसकी आंखों में
उठाती हाथ, दौड़ती पूरब की ओर
मारकर ढहाके जोर-जोर
सोचती थी तुम आओगे एक दिन
मिट जाएंगे उसके सारे संताप
समेट लोगे उसे बाहों में अपनी
भूलकर सभी गुनाह उस के
कर लोगे पापों का पश्चाताप
पर तुम ना आए और
वह चली गई पूरब से दक्षिण
मिटा न पाई अपने हाथों की लकीर
भूख से व्याकुल होकर
भूखी ही तुम्हारे प्रेम की
वह पगली ही तो थी...

#षणानन

Hindi Poem by Abhinav Bajpai : 111440734

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