हम सबने राजा और चींटी की कहानी सुनी है, जिसमें एक राजा युद्ध में हारकर एक गुफा में जाता है, और वह एक चीटी से प्रेरणा पाकर दोबारा अपनी सेना एकत्रित कर युद्ध में जीतता है इस प्रकार वह अपना राज्य और सम्मान पुनः प्राप्त करता है, हम सब भी जब अपने जीवन में बार बार असफल होने लगते है, तो कभी - कभी हम अवसाद ग्रस्त हो जाते है, और हम यह मान बैठते है कि अमुक कार्य अब नहीं कर सकते, जब कि यह अंतिम सत्य नहीं होता, क्योंकि हमें आखिरी सांस तक हार नहीं माननी चाहिए और हमे सफलता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए


एक राजा बैठा था थका हारा
देखा चींटी को पार करते दीवार
जो चढ़ती और गिरती बार-बार
आसान नहीं थी यह चढ़ाई...
कठिन थी, दुष्कर थी,
फिर भी चींटी को हरा ना पाई
चींटी उठती, संभलती...
करती और एक अंतिम प्रयास
यह देख राजा में दौड़ा साहस अनायास
अंत में चढ़ते चढ़ते चींटी दीवार को पा गई..
राजा ने देखा उसको भी यह बात भा गई
सारी घटना देख रहा था, राजा होकर मौन
उसने पहचाना स्वयं को, कि वह है कौन?
राजा के मन में सहसा कौधां एक विचार..
सोंचा उसने जब अदनी सी चींटी,
चढ़ने को दीवार करती प्रयास बार-बार
फिर तो मैं मानव हूं, प्राणियों में श्रेष्ठ,
उस पर भी महान राज्य का महाराजा विशेष
फिर मैं क्यों बैठा मानकर हार
और क्यों होता हूं इतना निराश
भुजाएं लगी उसकी फड़कने
और हृदय लगा मचलने
तेजी से खींची उसने तलवार
चला वहां से लेकर मन में संभावनाएं अपार

#षणानन

Hindi Poem by Abhinav Bajpai : 111439784

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