#विनोदी


मैं बी चुप सी खींचग्गी

आज संडे का दिन था
अर उसका लड़न का मन था
उसनै दरवाजा खोल्या
नाई कै जाऊं सूं न्यू बोल्या
मखा बाळ छोटे करवाकै आवैगा के?
बोल्या बडे करवाकै आऊं सूं चालै सै के?
मैं बी चुप सी खींचग्गी
अर मुट्ठी सी भींचग्गी
बोल्या देखिए लाइट सै के
मंखा क्यूँ चिपणा सै के?
वो आंख काढ़के गुर्राया
जाणु मारणा झोटा आया
ईब्ब बोलचाल बंद हो ली थी
मैं बी कति परेशान सी हो ली थी
रात नै पर्ची लिखके दे देई
लिख्या मन्नै पांच बजे ठा देई
मैं बी घणी हाई थी
खार खाये बैठी थी
मन्नै बी पर्ची बणाके धरदी जी
पांच बजगे उठ ज्याओ जी
तड़के के सात बजगे
जनाब के होश से उडगे
बोल्या तन्नै ठाया कोनी
मंखा तन्नै ठाण की कही ए कोनी
बोल्या पर्ची तो धरी थी
मंखा पर्ची तो मन्नै बी धरी थी
जनाब नै माथा पीट लिया
बोल्या तैं जीतगी मैं हार लिया
आज कै बाद किस्से तैं न्ही लडूं
तेरै गैल तो कति ना भिडूं।।

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा

Hindi Poem by एमके कागदाना : 111438843

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now