तो आज की मेरी कविता आजकल कि हालातों से ही हैं।
तो शुरूआत करते हैं इन दिनों किसी की जिंदगी घर पर तो किसी कि अस्पताल मैं गुजर रही होगीं,
चौराहे पर खड़ा होगा वर्दी पहनकर निगाहें उसकी आने जाने वालों पर पड़ी होगीं।
तंग हैं कुछ वहीं चेहरे वहीं दिवारें देखकर तो किसी कि कब्र बिना फूलों कि दबी हुई हैं,
लाजवाब पकवान पक रहें हैं रसोईं मैं, तो किसी कि थाली बस पाणी से ही भरी होगी।
सुहाना मौसम आसमान से पौछाद बूँदो की तो किसान केलिए बारिष उसकी आँखों से निकली होगी कोई जान की किमत बिना समझें इधर उधर घूम रहें हैं।
तो किसी ने अपनी पूरी जान दवाई ढूँढने में लगाई होगी।
मुक्दत का खेल मानों या वक्त ही कों मानों ये पल ये समय किसी के लिए # old memories तो किसी के लिए बस तबाही होगी।

🖋 prajakta

Hindi Poem by Prajakta Bokefode : 111438731
MD Navedd 4 years ago

Lagi raho, you will be a great poet one day, Matlab hope so.

Prajakta Bokefode 4 years ago

Thank you so much...

The best sellers write on Matrubharti, do you?

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