"तन्हाई के बादल थे और अल्फाज़ो की बारिश थी, वो बरसे ऐसे जैसे बिजली सी आहत थी, लफ्ज़ो पर फिर भी ख़ामोशी थी लेकिन दिल में एक आहट थी के यह तो होना ही था क्यूंकि यह तो बिन मौसम बरसात की शरारत थी"

Hindi Shayri by zeba Praveen : 111438216

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