Zindagi by MoonsFeeling

एक हारा हुआ इंसान हूँ
चार कदम चल कर थक जाता हूँ
थक गया हूँ इस जिंदगी से
बस अपने घर लौटना चाहता हूँ ------------------〽️

यार कितनी दूर है मंजिल, और कितना चलना होगा
इतनी तो गलतियां भी नहीं करता मैं,
क्या अब पल-पल संभलना होगा,
लोगों से सुना है कि
दिन में पसीने ही पसीने में तर रहता हूँ
क्या मैं इतनी मेहनत करता हूँ,
जो मैं अपने आप से बेखबर रहता हूँ
थक गया हूँ इस जिंदगी से
बस अपने घर लौटना चाहता हूँ ------------------〽️

दिन में पसीना है और रात में आंसू
पसीना तो पोछ लिया, पर आंसू कैसे पोछूं
बहुत रो लिया अब रोना नहीं चाहता हूँ
अब मैं सुकून से भरा एक आशियाना चाहता हूँ
थक गया हूं इस जिंदगी से
बस अपने घर लौटना चाहता हूँ----------------〽️

जिंदगी कितनी तकलीफ देती है
कुछ पास हो उसे भी छीन लेती है
कुछ पाने के लिए कितना तरसाती है
और कुछ खोने के लिए झट से मान जाती है
यहां तो कोई अपना नहीं, लोग भी फरेबी
तुम ही बताओ, मैं शरिफ ,मेरी कैसे चलेगी
जिंदगी से तो हार गया हूँ
लोगों से भी हारना चाहता हूँ
थक गया हूं इस जिंदगी से
बस अपने घर लौटना चाहता हूँ ------------------〽️

हम कितनी मेहनत करते है कुछ चंद सिक्को के लिए
उम्रे गुजर जाती है छोटी छोटी खुशियों को तालशने में
मै छोटी सी उम्र में ओर,
आने वाली बड़ी सी जिंदगानी में
माना मै अपने पास सब रखता हूं
दर्द ,गम, ख़ुशी,हसी,
दोस्त,प्यार, परिवार, जिम्मेदारियां
पर इस बड़ी सी जिंदगी में
मैं कुछ वक्त अकेला रहना चाहता हूं
थक गया हूं इस जिंदगी से
बस अपने घर लौटना चाहता हूं_
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© chand Hussain (Original)

Hindi Poem by MoonsFeeling : 111437908

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