झूठ का सच ? भाग – 7

आपका मन कैसे खेलता है आइये इसे समझते हैं | मान लीजिए कि आप पार्क में चक्कर लगा रहे हैं | अचानक आपको रास्ते के बीचो-बीच एक गड्ढा दिखता है | जब आप वहाँ पहुँचते है तो आपका मन करता है कि इसे छलांग लगा कर पार कर लेते हैं | फिर एक आवाज आती है कि नहीं इसके साइड से निकल जाते हैं | आप मन की बात मान कर यह निश्चय करते हैं कि कूद कर देखते हैं | और जैसे ही आप कूदने लगते हैं तभी आपका मस्तिष्क आपको विश्लेष्ण करके देता है कि आपने आज तक इतने बड़े गड्ढे को कभी कूद कर पार नहीं किया है | यह आपके बस से बाहर है | फिर भी आपका मन आपको एक कोशिश करने को उकसाता है | आप मन की मान कर कूदने की सोचते ही हैं कि आपके अंदर से एक बार फिर आवाज आती है कि यदि आप कूद कर पार नहीं हो पाए तो बिना बात के चोट लग जायेगी | ऐसी बेवकूफी नहीं करनी चाहिए | आपको यह बात ठीक लगती है और आप गड्ढे की साइड से निकल जाते हैं | आपका मस्तिष्क आपको शाबाशी देता है लेकिन आपका मन बार-बार आपको पीछे मुड़ कर देखने को कहता है और आप देखते भी हैं | आगे आने के बावजूद भी आपका मन आपको भड़काता रहता है कि कूद कर देखने में क्या जाता था | कोई ख़ास चोट नहीं लगती | यह जद्दोजहद इसलिए आपके अंदर चल रही थी क्योंकि आपने मन की नहीं मानी | खैर, एक और आवाज आपके अंदर से आई थी जिसे आपने माना और आपके मस्तिष्क ने भी उसे सही ठहराया | वह कहाँ से आई, दोस्तों, यह आवाज आपकी आत्मा की थी | अगर आपके मस्तिष्क और शरीर पर आपके मन का पूरा कब्ज़ा नहीं है तो आपकी आत्मा आपको समय-समय पर सही राह दिखाती रहती है |
आध्यात्म कहता है कि ऐसा सिर्फ ख्वाब में ही हो सकता है कि अच्छा रहे और बुरा खत्म हो जाए | सूर्य की रौशनी की जरूरत तभी है जब रात और अँधेरा होता है | आध्यात्म कहता है कि अच्छे का फल अच्छा मिलेगा और बुरे का फल बुरा मिलेगा | लेकिन इसे तार्किक रूप से पेश नहीं किया गया है | यही वजह है कि आज की पीढ़ी हम से यह सवाल बार-बार करती है कि कहाँ और कब अच्छे का फल अच्छा मिलेगा या मिलता है | चारों तरफ तो बुरा करने वाले हैं और सब फल-फूल रहे हैं | इस में कोई शक की बात नहीं है कि आज ऐसा लगता जरूर है लेकिन है नहीं | गीता में भी कहा गया और रामायण में भी | लेकिन आज की पीढ़ी कहाँ मानती हैं इन बातों को | क्योंकि हम सिर्फ कही गई बातों को दोहरा रहे हैं | उसे साबित कर या उसे आज के माहौल में ढाल कर युवा पीढ़ी को नहीं बता पा रहे हैं |

Hindi Blog by Anil Sainger : 111436918

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