यादों के संमन्दर में जबाव खोये तो याद आने लगी पागल पन के हद से गुजर जाने बाले तरुणाई के वो हसीन पल ।
दिन-रात उन्ही से मिलने की तड़प उन्हें देखने की ललक,
कितनी ही बार उनकी गलियों में वेवजह चक्कर काटना ।
ना जाने क्या-क्या जतन करके कि बस मुलाकात हो जाये
भले ही बात हो ना हो उनसे नज़रों से आदाब तो हो जाये ,
स्कूल-कॉलेज की छुट्टियाँ तो हमे बस काल ही लगती थी
मोवाइल तो थे नही दोस्त आंखे उन्हें देखने को तरसती थी
अजीब दिन थे पहली मोह्हबत में हुये पागलपन के यारो ,
खुद को शाहजादे सलीम,वो हमारी थी अनारकली यारो ।
अब तो सब किस्से ही किस्से है यादे भी भूली बिसरी सी है
यौवन पग में हुये प्यार के किस्से बरबस युही याद आते है ,
*************कमलेश शर्मा"कमल"**************
#पागल