#परिचय
करोना महामारी ने परिचय का तरीका और मयाने ही बदल दिये हैं । अब दूर से नमस्ते भली ।
हाथ मिलाने गले लगाने और गले पड़ने का युग बीत
गया ।
राजनीति में चरण वंदन का अब तक घटाटोप प्रकोप
रहा आया है । परंतु अब ये चलन भी खतरे में है ।
नेता जी भी अपने भक्तों से दूर से ही बात कर रहे हैं।
चरण स्पर्श कर न जाने कौन अपना उल्लू सीधा करने
माथे सहित वायरस धर जाते नेता जी शंकित हैं ।
चौरासी लाख यौनियों में अटकते भटकते मानव तन
धारण किया । फिर न जाने कितने गाड फादर टेम्प्रेरी
और परमानेंट बदले कितनों के लंगोटा धोये तब जाकर
टिकट प्राप्त किया । फिर गली गली हाथ पांव पकड़े।
ऐसी सडी गलियों में घूमे और जो फूटी आंखों से न सुहायें उन से परिचय किया । चाचा, दद्दा ,अम्मा , दीदी ,और भाभी कैसे कैसे परिचय । एक जगह तो भाई साहब नहीं थी संकरी गली की मलिन बस्ती थी भाभी जी कहा तो
कहन लगीं 'देवर जी मोड़ा (बच्चा)नर्दा में बैठो हो
जरा पौंद धुल दो वोट तो आपको ही देने हैं ।
ऐसे ऐसे कर्म करके एम एल ए (विधायक) बने और
मंत्री पद पाये अब तो स्मृति पटल से वो लोग वो बस्तियां सब सब विस्मृत कर दी हैं ।( सरल शब्दों में भाड़ में गये
साले पांच साल बाद देखेंगे )
मगर इस चार दिन की जिन्दगी में मंत्री पद ही सब कुछ नहीं है ।ध्येय ऊंचा होना चाहिए इसलिए मुख्यमंत्री पद
नज़रें इनायत हैं । विरोधी दल में परिचय की सेंध लगाई जा रही है । 'राजा' साहब से राम रहिम हो गई है
परिचय प्रगाढ़ हो फिर गोटी फेरें ।दूर से ही सही नमस्ते तो हुई 'अपुन भी बहुत ऊंची चीज हैं' , राजा साहब के पास बीस विधायक हैं और अपन को चाहिए केवल दस चाहिए
राज्य में अपनी सरकार झक मारकर ऊपर वाले हमको
'मुख्य मंत्री ' बनायेंगे।
परिचय गहन होना चाहिए ।