(51) शस्य श्यामल गाँव
घने अंधेरे में नियति ने दिया है डाल
हुई चकित भ्रमित मानव की हर चाल
कौन?नही चाहता समाजिक नजदीकियाँ
परिस्थितियों ने गढ़ लीं समाजिक दूरियाँ
क्या कोई भी चाहेगा शून्य से भी टकराना
कौन? चाहेगा अदृश्य युद्ध में जान गँवाना
दुनिया का देख दर्द मेरा ह्रदय हुआ पाषण
इस वैश्विक युद्ध में क्या? बच पाएंगे प्राण

नियति से कहाँ? चला है किसी का बिरोध
मानव कर ही सकता है नियति से अनुरोध
प्रकृति के अवबोध का है प्रत्यक्ष ऐ परिणाम
आसमान में चमकता तो सूर्य,धरा पर शाम
ईश्वर के खौप का कहाँ? है किसी को बोध
मानव ब्यर्थ में ही कर रहा है ईश्वर से क्रोध
रूठी गेहू की बाली,चना,अरहर और धान
नही निकलते कमल,कुमुदनी,तालमखान

याद आने लगे हैं शस्य श्यामल गांव कछार
छोड़ शहर घर आये कर लक्ष्मण रेखा पार
जाने लगे हैं मिलने सब जमीदारन के पास
भूला कर बीती बात लेकर काम की आस
धन्य हैं वे जिनके मृदुलतम खेतों की सुगंध
जिसे सूंघ कर मिटती थी भूखन की दुर्गन्ध
याद आतीं हैं मुझे लगुईन लगुवन की बात
खेतों के मेड़ो में बीतती थीं पूरी ठंढ़ी रात!
रचनाकार-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित:-

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111433105

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now