(50) "पत्थर के देवता"
पत्थर के देवता
हे शिव शंकर भगवान!
करूँ हमेशा मै उद्दण्ता के ही काम
भूल कर भी कभी न जपु तेरा नाम
करूँ सदा निर्भय होकर पाप हजार
फिर भी चाहू नतमस्तक रहे संसार
अदृश्य नाग़ बन डसता रहूँ सुख-चैन
ब्रम्हपुत्र कभी न पहुचें मुझ तक तेरे नैन,

पत्थर के देवता
हे शिव शंकर भगवान!
नहीं चाहिए मुझे तुझसे कैसे भी बरदान
खुला रहे आतंक का मेरा यह रोशनदान
मानवता को लीलने मुझको है अधिकार
नहीं कभी रगडू मै तेरे कोई मंदिर के द्वार
गलियां करूँ मै सकरी ले न पाएं कोई साँस
गले को जैसे जकड़े है यहाँ करोना की फाँस,

पत्थर के देवता
हे शिव शंकर भगवान!
नीहारिकाओं का करे न कोई अभिसार
हो गया तेरा जतन प्रभु,तडप रहा संसार
सड़े मानव आदर्श विचारों के महा अर्श
माह में ही गिर गया मानव दंभ, अब फ़र्श
अत्याचार,ब्याभिचार,मानव खून रंगी धरती
बिकल हुई माया संघार करे वो क्या? करती
मूँद आँख कर करूँ शून्य का ही ध्यान
पत्थर के देवता हे शिव शंकर भगवान!
रचनाकार-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111432156
Shiv Sagar Shah 4 years ago

सारगर्भित कविता के लिए हार्दिक बधाई

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