झूठ का सच ? भाग – 3

दोस्तों, हम जैसे-जैसे हम तरक्की करते जा रहे हैं वैसे-वैसे हम अकेले होते जा रहे हैं | पहले पूरा देश, हमारा अपना होता था | वक्त बदला, प्रदेश अपना होने लगा, फिर गाँव | और वक्त बदला, हमारा परिवार अपना होने लगा | यहाँ ‘अपने से’ मतलब है जिसके लिए जान भी दी जा सकती है | फिर वक्त और तरक्की के साथ-साथ, हम अपने बड़े परिवार से अलग हो एकल परिवार में रहने लगे | एकल परिवार में रहने की कई बार मजबूरी भी होती थी लेकिन ज्यादात्तर तो इच्छा होती थी | अब तो ये आलम हो गया है कि चारों तरफ एकल परिवार ही दिखते हैं |
अब हम एकल परिवार होने के कारण ऊबने लगे हैं | ऐसा आपने सुना भी होगा और खुद बोला भी होगा कि बहुत दिन हो गये हैं इस चक्की में पिसते हुए | अब जब भी तीन-चार दिन की छुट्टियाँ होंगी या समय मिलेगा तो कहीं बाहर घूमने चलेंगे या शाम को फिल्म देखने चलते हैं या शाम को पार्टी करते हैं | शहरों में तो अब ये एक रिवाज-सा बनता जा रहा है कि शनिवार और रविवार बाहर मौज-मस्ती में गुजारना ही है | बहुत लोग शाम क्लब में गुजारने लगे हैं | पार्टी, किट्टी-पार्टी एक आम बात हो गई है |
इन सबके साथ-साथ एक और परिवर्तन आ रहा है कि एकल परिवार में रहने वाले लोग किसी छोटी या बड़ी सोसाइटी में मकान लेने की सोच रहे हैं या रहने लगे हैं ताकि परिवार सेफ रहे |
दोस्तों, ऊपर लिखे तीनों points को दुबारा-तिबारा पढ़िए | आपको इन में कुछ बातें कॉमन मिलेंगी |
इन में एक बात कॉमन है कि हम पहले सबका सोचते और करते थे लेकिन अब सिर्फ अपने परिवार और बच्चों का ही सोचने लगे हैं | वैसे तो अब हम धीरे-धीरे और भी भयावह स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं | अब एकल परिवार में भी पति-पत्नी, भाई-बहन या भाई-भाई या बहन-बहन का आपस में मुकाबला शुरू हो गया है | ये सब शुरू होने का मतलब है कि कुछ वर्ष बाद एकल परिवार प्रथा भी खत्म होने की कगार पर पहुँच जाएगी | यह सब बहुत बुरा हो रहा है | गाँव में रहने वाले ये मत सोचें कि ये सब शहर में हो सकता है गाँव में नहीं | शहर में रहने वाले ये मत सोचें कि ये हमारे परिवार में नहीं हो सकता | दोस्तों, ये सब सोचते-सोचते ही हम यहाँ पहुँचे हैं |
एक और बात भी कॉमन है कि हम अपने बड़े परिवार को छोड़ने के बाद भी उसे भूले नहीं हैं | कुछ समय के लिए जरूर अलग हुए थे लेकिन अब पिछले पन्द्रह-बीस साल से फिर उसी ओर बढ़ने लगे हैं | हम ताऊ-चाचा को छोड़ ऑफिस या पार्टी में बने नए दोस्तों में खोने लगे हैं | हम अपने बड़े परिवार को छोड़ सोसाइटी में घर लेकर रहने लगे हैं या सोच रहे हैं | हम शनिक मौज-मस्ती के आदि होते जा रहे हैं |

Hindi Blog by Anil Sainger : 111429760

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now